एक भारतीय नारी का फेसबुक स्टेटस पढ़ा आज…कहती हैं कि लड़की को क्यों इतने सारे जबरदस्ती के रिश्तों में बांध दिया जाता हैं…क्यों नहीं वह सिर्फ एक उस रिश्ते के साथ अपनी जिन्दगी ख़ुशी से गुजार सकती जिसके साथ वह रहना चाहती हैं यानी की उसका पति .
जी शादी सिर्फ़ दो लोगों के बीच का बंधन नहीं हैं … शादी दो परिवारों के बीच होती हैं … पर जिन्हें रिश्ते ही बंधन लगते हो …. उनके लिए शादी की पवित्रता को समझना थोडा कठिन हैं …… और रही बात उस एक मिया बीवी के रिश्ते में खुश रहने की तो नारीजी आपके माता पिता नाहक ही आपका बोझ उठाया और आपके पति के माता पिता ने उनका …वो लोग भी आपके नक़्शे कदम पर चले होते तो शायद आप दोनों ही न होते …. आपके भाई की शादी भी इसी सोच वाली लड़की से हो और वो अपने पति के साथ अकेले सुखी संसार बिताये …आपके बच्चे भी इसी एक रिश्ते में खुश रहे …। शायद इस दर्द का एहसास अभी न हो आपको क़्यो कि फ़िलहाल आप इस दर्द का वितरण कर रही हैं … पर झेलने की बारी भी आएगी…आप जिन रिश्तो में नहीं बंधना चाहती वो रिश्ते शायद आपके पति के साथ बरसों से हैं पर आप कामयाब होती दिख रही मुझे अपने साथ अपने पति को भी इसी एक रिश्ते में ख़ुशी से जीने की आदत डालने की …. परिवार शायद इसीलिए ख़तम हो रहे हैं …. परिवार को तो नारी जोडती हैं पर जब आज की पढ़ी लिखी नारी ने परिवार तोड़ने का जिम्मा अपने सर ले ही लिया हैं तो …अजीब लगता हैं कभी कभी …सिर्फ़ में और तू और कोई नहीं … कोई रिश्ता नहीं कोई परिवार नहीं …. रोक टोक नहीं । तू मुझे देख कर जिये और में तुझे देख कर … प्यार … अच्छा हैं … पर ये स्वार्थी प्यार हैं … और मेरी डिक्शनरी इसे प्यार नहीं कहती ….
जी शादी सिर्फ़ दो लोगों के बीच का बंधन नहीं हैं … शादी दो परिवारों के बीच होती हैं … पर जिन्हें रिश्ते ही बंधन लगते हो …. उनके लिए शादी की पवित्रता को समझना थोडा कठिन हैं …… और रही बात उस एक मिया बीवी के रिश्ते में खुश रहने की तो नारीजी आपके माता पिता नाहक ही आपका बोझ उठाया और आपके पति के माता पिता ने उनका …वो लोग भी आपके नक़्शे कदम पर चले होते तो शायद आप दोनों ही न होते …. आपके भाई की शादी भी इसी सोच वाली लड़की से हो और वो अपने पति के साथ अकेले सुखी संसार बिताये …आपके बच्चे भी इसी एक रिश्ते में खुश रहे …। शायद इस दर्द का एहसास अभी न हो आपको क़्यो कि फ़िलहाल आप इस दर्द का वितरण कर रही हैं … पर झेलने की बारी भी आएगी…आप जिन रिश्तो में नहीं बंधना चाहती वो रिश्ते शायद आपके पति के साथ बरसों से हैं पर आप कामयाब होती दिख रही मुझे अपने साथ अपने पति को भी इसी एक रिश्ते में ख़ुशी से जीने की आदत डालने की …. परिवार शायद इसीलिए ख़तम हो रहे हैं …. परिवार को तो नारी जोडती हैं पर जब आज की पढ़ी लिखी नारी ने परिवार तोड़ने का जिम्मा अपने सर ले ही लिया हैं तो …अजीब लगता हैं कभी कभी …सिर्फ़ में और तू और कोई नहीं … कोई रिश्ता नहीं कोई परिवार नहीं …. रोक टोक नहीं । तू मुझे देख कर जिये और में तुझे देख कर … प्यार … अच्छा हैं … पर ये स्वार्थी प्यार हैं … और मेरी डिक्शनरी इसे प्यार नहीं कहती ….
3 टिप्पणियाँ:
डिम्पल ...पूरी पोस्ट पढ़ी और तभी से सोच रही हूँ कि क्या होता जा रहा है आज कल के बच्चों को क्यों हर कोई (खास कर लड़कियाँ )अकेले रह कर खुश है ...वो लोग क्यों नहीं परिवार का महत्व को समझ रहें |उम्र की शुरुवात में तो अकेलापन(चाहें वो पति के साथ ही क्यों ना हो )बहुत अच्छा लगता है ...उस वक्त यारी-दोस्ती ,मस्ती सब अच्छी लगती है ..पर जैसे जैसे उम्र बढ़ती है ...ये अकेलपन एक बीमारी का रूप ले लेता है
काश अकेले रहने वाले वक्त रहते परिवार और रिश्तों की अहमियत को समझ सकते
sahi kaha mam.....aaj ki ye maoj masti wali jindgi ki chah inke kal ko dubhar bna degi.....
sahi kaha mam.....aaj ki ye maoj masti wali jindgi ki chah inke kal ko dubhar bna degi.....
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